Submitted By : M. IRFAN

दिल यूं तो मेरा ग़म से परेशां बोहोत है,
समझाए न समझेगा के नादान बोहोत  है.
जिसने मुझ से कभी मेरा सुख छीन लिया था,
सुनते हैं के वो शख्स परेशान बोहोत है.
फिर भी ये यकीं है के वो आएगा मेरे घर,
वेसे तो न आने का भी इमकान बोहोत है.
जिस बात का इस दिल को हमेशा से यकीं था,
दिल फिर से उसी बात पे हैरान बोहोत है.
ज़ालिम से कोई कह दे ज़रा तीरे-सितम और,
मज़लूम के सीने मैं अभी जान बोहोत है.
आया है मुझे देख के उस लब पे तबस्सुम,
मेर लिये जीने का ये सामन बोहोत है.
उसकी ये तमन्ना के मिटा दे मेरी हस्ती,
और मुझको भी मिट जाने का अरमान बोहोत है. 
नेमत है है ग़में - इश्क़ मगर "इर्फ़ान" ये सुन लो, 
इस काम मैं रुसवाइयों को इमकान बोहोत है.


Email ID : irfan.tspl@live.in
Date : May 24, 2012 12:17:14

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