खयालातों का एक
समुंदर है जहां
में,
हज़ारों की ख्वाहिशें
हैं जहां में।
अपनी ख्वाहिशों को पूरा
करने का देखो,
शौक किस क़दर
जवां है जहां
में।
आबरु अपनी रखती
है की़मत करोड़ों
की,
बे-आबरु बस
हर गै़र है
जहां में।
नहीं शर्म आती
हमारे सरपरस्तों को,
दिखाने को क्या
बस यही कुछ
है जहां में।
सिर्फ अपने ही
शौक की ख़ातिर
बस,
क्या बनी हर
आबरु है जहां
में ?
ज़रा झांक के
अपने ही गिरेंबां
में देखो,
आएगी नज़र तस्वीरे-हकी़कत तुम्हें यहीं।
बस पहचान जाओगे अपने
आपको तुम,
क्या कुछ है
अपना हक़-ओ-फर्ज़ जहां में।