कुछ ज़्यादा लगा बैठे, उम्मीदें जहाँ से हम, कर बैठे शायद, बेवफाई खुद ही से हम |
फ़ेर के पानी मेरी उम्मीदों पे, उन्हें भी मेरा इंतज़ार है,
और बनाये बैठे हैं, महल ख्वाबों का हम |
जाने दुनिया में क्यूँ, इतनी कमी है प्यार की,
फिर भी ज़हन में है, उनके प्यार का वहम |
आज था इंतज़ार दिल को, शायद वो याद करें,
उजड़ गया मगर , उम्मीद का हर चमन |
याद आया फिर हमें, ये तो दौर-ए-मतलब परस्त है,
कैसे नींद आ गयी, क्यूँ न जागे सुहाने ख्वाब से हम |
कर रहे अब सफ़र इमरान , फिर नया शुरू हम,
ढूंढ ही लेंगे एक न एक दिन, चले थे जिसकी तलाश में हम |