क्या करूँ कहाँ जाऊं किससे करूं शिकायत उसकी,
वो जो मेरी शिकायत के लिए हर दर पे खड़ा हुआ है,
हो ही जाये प्यार उनको भी मेरी रब से दुआ है,दिल मेरा तड़प रहा है जब से उनसे प्यार हुआ है,
कुछ नज़र रौशनी मैं नहीं आता क्या करूं ऐ दोस्त,
जब से आँखों को उस हसीन का दीदार हुआ है,
मुझे कह रहे है दोस्त तू क्यों उसपे फ़िदा है दोस्त
वो सितमगर जो किसी और शजर पे बैठा हुआ है
परिंदे भी करते है मेरे खतो किताबत की हिफाज़त
वो क्योँ मेरे खतों को जलाने को तुला हुआ है
रास्ते का पत्थर भी दुआ करे तुम्हारे लिए "इरफ़ान"
कुछ ऐसा है इस्लाम का कानून जो माना हुआ है